Taja Report

सोमवार विशेष : पंचाग एवँ राशिफल

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🗓आज का पञ्चाङ्ग एवम् राशिफल 🗓*

*🌻सोमवार,२१अप्रैल २०२५🌻*

*_🔅 तिथि अष्टमी 07:02 PM तक✳️उसके बाद नवमी तिथि🔥_*

 

*_🔅 नक्षत्र उत्तराषाढ़ा 12:38 PM तक ✳️उसके बाद श्रवण नक्षत्र और साथ ही पंचक प्रारम्भ🔥_*

*_🔅 करण :-भद्रा👇नहीं है।✳️_*

बालव 07:08 AM तक,

कौलव 07:02 PM तक।

*_🔅 पक्ष कृष्ण✳️_*

🔅 योग साघ्य 10:59 PM

*_🔅 वार सोमवार✳️_*

 

*_☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ👇_*

🔅 सूर्योदय 05:50 AM

🔅 चन्द्रोदय +02:07 AM

*_🔅 चन्द्र राशि मकर🔥_*

🔅 सूर्यास्त 06:50 PM

🔅 चन्द्रास्त 11:54 AM

🔅 ऋतु ग्रीष्म

 

*_☀ हिन्दू मास एवं वर्ष👇_*

🔅 शक सम्वत 1947 विश्वावसु

🔅 कलि सम्वत 5127

🔅 दिन काल 01:00 PM

🔅 विक्रम सम्वत 2082

🔅 मास अमांत चैत्र

🔅 मास पूर्णिमांत वैशाख

 

*_☀ शुभ और अशुभ समय👇_*

*_☀ शुभ समय👇_*

🔅 अभिजित 11:54:09 – 12:46:09

*_☀ अशुभ समय👇_*

🔅 दुष्टमुहूर्त 12:46 PM – 01:38 PM

🔅 कंटक 08:26 AM – 09:18 AM

🔅 यमघण्ट 11:54 AM – 12:46 PM

*_🔅 राहु काल 07:27 AM – 09:05 AM🔥_*

🔅 कुलिक 03:22 PM – 04:14 PM

🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 10:10 AM – 11:02 AM

🔅 यमगण्ड 10:42 AM – 12:20 PM

🔅 गुलिक काल 01:57 PM – 03:35 PM

*_☀ दिशा शूल👇_*

🔅 दिशा शूल पूर्व

 

*_☀ चन्द्रबल और ताराबल👇_*

*_☀ ताराबल👇_*

🔅 भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती

*_☀ चन्द्रबल👇_*

🔅 मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर, मीन

 

*_💫🪴अप्रैल महीने 2025 के इन👇तारीखों में शुभाशुभ मुहुर्त👇🌹🥀_*

 

🔅 विवाह मुहूर्त

21st, 29th, 30th

 

🔅 मुंडन मुहूर्त

23th, 24th

 

🔅 गृह प्रवेश मुहूर्त

25th, 30th

 

🔅 नामकरण मुहूर्त

21st, 23rd, 24th, 25th, 30th

 

🔅 अन्नप्राशन मुहूर्त

25th, 30th

 

🔅 कर्णवेध मुहूर्त

21st, 26th

 

🔅 विद्यारम्भ मुहूर्त

कोई मुहूर्त नहीं है

 

🔅 उपनयन/जनेऊ मुहूर्त

30th

 

🔅 वाहन खरीद मुहूर्त

21st, 23rd, 24th, 30th

 

🔅 प्रॉपर्टी खरीद मुहूर्त

`नहीं है।`

 

🔅 सर्वार्थ सिद्धि योग

21st, 27th, 29th, 30th

 

🔅 अमृत सिद्धि योग

`नहीं है।`

 

🔅 पंचक

22nd, 23rd, 24th, 25th,

 

🔅 भद्रा

23rd, 26th

 

*_⚜️लगन👇तालिका⚜️_*

 

सूर्योदय का समय: 05:50:09

 

सूर्योदय के समय लग्न मेष चर

06°10′44″

 

🔅 मेष चर

शुरू: 05:27 AM समाप्त: 07:07 AM

 

🔅 वृषभ स्थिर

शुरू: 07:07 AM समाप्त: 09:03 AM

 

🔅 मिथुन द्विस्वाभाव

शुरू: 09:03 AM समाप्त: 11:18 AM

 

🔅 कर्क चर

शुरू: 11:18 AM समाप्त: 01:38 PM

 

🔅 सिंह स्थिर

शुरू: 01:38 PM समाप्त: 03:56 PM

 

🔅 कन्या द्विस्वाभाव

शुरू: 03:56 PM समाप्त: 06:13 PM

 

🔅 तुला चर

शुरू: 06:13 PM समाप्त: 08:33 PM

 

🔅 वृश्चिक स्थिर

शुरू: 08:33 PM समाप्त: 10:51 PM

 

🔅 धनु द्विस्वाभाव

शुरू: 10:51 PM समाप्त: अगले दिन 00:56 AM

 

🔅 मकर चर

शुरू: अगले दिन 00:56 AM समाप्त: अगले दिन 02:38 AM

 

🔅 कुम्भ स्थिर

शुरू: अगले दिन 02:38 AM समाप्त: अगले दिन 04:06 AM

 

🔅 मीन द्विस्वाभाव

शुरू: अगले दिन 04:06 AM समाप्त: अगले दिन 05:27 AM

 

*_⚜️6 बजे प्रातः👇ग्रह स्पष्ट🪷_*

 

निरायण, Sidereal

ग्रह राशि

निरायण नक्षत्र, पद

निरायण

लग्न मेष 9°22′ अश्विनी3 चो

सूर्य मेष6°57′ अश्विनी3 चो

चन्द्र मकर6°25′ उत्तराषाढा3 जा

बुध मीन9°42′ उत्तरभाद्रपदा2 थ

शुक्र * मीन1°38′ पूर्वभाद्रपदा4 दी

मंगल कर्क6°59′ पुष्य2 हे

बृहस्पति वृषभ25°12′ मृगशीर्षा1 वे

शनि मीन2°40′ पूर्वभाद्रपदा4 दी

राहू * मीन1°32′ पूर्वभाद्रपदा4 दी

केतु * कन्या1°32′ उत्तर फाल्गुनी2 टो

 

यूरेनस वृषभ1°34′ कृत्तिका2 ई

नेपच्यून मीन6°34′ उत्तरभाद्रपदा1 दू

प्लूटो मकर9°34′ उत्तराषाढा4 जी

सायन, Tropical

ग्रह Tropical Position

सायन

लग्न 33°35′

सूर्य 31°10′

चन्द्र 300°38′

बुध 3°54′

शुक्र * 355°51′

मंगल 121°12′

बृहस्पति 79°25′

शनि 356°53′

राहू * 355°45′

केतु * 175°45′

 

यूरेनस 55°47′

नेपच्यून 0°47′

प्लूटो 303°46′

 

अयनांश लाहिरी / चित्रपक्ष = 24°13′

 

*_आज के लिए खास_*

*_यहां जो लेख दिये जा रहे हैं यह पूरी तरह जानकारी और अनुभव आधारित है,इसके प्रयोग के लाभ हानि के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे इसमें लेखक की किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं होगी_*

 

••••शास्त्रोंके उपकारक आचार्य बृहस्पति और उनका मुहूर्तशास्त्र•••

 

√•आचार्य बृहस्पति देवताओंके भी गुरु हैं। ब्रह्माजीके मानसपुत्र महर्षि अंगिराके तीन पुत्र हुए-बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त। इनमें बृहस्पति सबसे ज्येष्ठ और श्रेष्ठ हुए। देवगुरु बृहस्पति अत्यन्त सत्त्वसम्पन्न, वाणी- बुद्धि और ज्ञानके अधिष्ठाता तथा महान् परोपकारी हैं। महाभागवत श्रीभीष्मपितामहजीका कहना है कि आचार्य बृहस्पतिके समान वक्तृत्वशक्तिसम्पन्न और कोई दूसरा कहीं भी नहीं है-

 

“वक्ता बृहस्पतिसमो न ह्यन्यो विद्यते क्वचित्।”

(महा०अनु० १११।५)

 

√•आचार्य अपने एक रूपसे देवपुरोहितके रूपमें इन्द्रसभामें, ब्रह्मसभामें विराजमान रहते हैं तथा दूसरे रूपसे ग्रहके रूपमें प्रतिष्ठित होकर नक्षत्रमण्डलमें विराजमान रहते हैं और जगत्के कल्याणचिन्तनमें निमग्न रहते हैं। ज्योतिषशास्त्रके अनुसार बृहस्पति सब प्रकारसे अभ्युदयके विधायक हैं और इनकी कृपासे बुद्धि सत्त्वसम्पन्न होकर सन्मार्ग तथा धर्माचरणमें प्रवृत्त होती है। वेदों तथा पुराणेतिहासग्रन्थोंमें इनके उदात्त चरित्रका बहुधा उल्लेख हुआ है। आचार्य बृहस्पति वेदों और वेदार्थोंके तत्त्वज्ञ, समस्त कलाओंमें कुशल, समस्त शास्त्रोंमें पारंगत तथा नीतिविद्याके विशेषज्ञ हैं। वे हितका उपदेश करनेवाले, गुणवान्, देश-कालको जाननेवाले, ग्रह-नक्षत्रोंकी गतिका ज्ञान रखनेवाले और समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न हैं। उनके द्वारा भगवान् शंकरकी की गयी आराधना प्रसिद्ध ही है।

 

√•वेदोंमें एक श्रेष्ठ देवताके रूपमें इनका निरूपण हुआ है। वहाँ बताया गया है कि ये बुद्धि एवं यज्ञके अधिष्ठाता हैं। ‘सदसस्पति’, ज्येष्ठराज, वाचस्पति,बृंहणस्पति तथा पुरोहित आदि इनके नाम वेदोंमें आयो हैं। इनकी उत्पत्तिके विषयमें बताया गया है कि ये आकाशके महान् प्रकाशसे प्रकट हुए हैं और इनका वाणी स्वर्णके समान अरुणिम आभासे युक्त है।

 

√••••|बृहस्पतिजीके ग्रहोंमें प्रतिष्ठित होनेका वृत्तान्ताः

 

√•स्कन्दपुराणमें आया है कि देवगुरु बृहस्पक्तिबीने काशीमें शिवलिंगको स्थापनाकर बोर तपस्या की। तपस्या करते हुए जब दस हजार वर्ष बीत गये, तत्वा जगदीश्वर महादेव उस लिंगसे प्रकट होकर कहने लगे-‘मैं तुम्हारी तपस्यासे परम प्रसत्ता हूँ आपता अभीष्ट वर माँगो।’ अपने सामने उत्कृष्ट तेजोमया जटाजूटधारी परम कल्याणकारी शंकरकी मूर्ति देखकर वे उनकी स्तुति करने लगे- हे जगन्नाथ। आप त्रिगुणातीत, जरा-मरणसे रहित, त्रिजगन्मय, भक्तोंका उद्धार करनेवाले और शरणागतवत्सल हैं। आपके दर्शनोंसे ही मैं कृतकृत्य हो गया हूँ। मेरी समस्त कामनाएँ पूर्ण हो गयी हैं। अतः कुछ भी प्राप्तव्य शेष नहीं है। आंगिरसकी ऐसी स्तुति सुनकर भगवान् आशुतोषने और भी प्रसन्न होकर अनेक वर दिये और कहा-हे आंगिरस ! तुमने बृहत् (बड़ा) तप किया है, इसलिये तुम इन्द्रादि देवोंके पति (पालक) तथा ग्रहोंमें पूज्य होओगे और तुम्हारा नाम ‘बृहस्पति होगा-

 

“बृहता तपसानेन बृहतों पतिरेथ्यह्यो।

नाम्ना बृहस्पतिरिति ग्रहेष्वच्यों भव द्विज ।”

(स्कन्दपु० काशी० पू० १७।४३)

 

√•हे ग्रहाधीश ! तुम बड़े वक्ता और विद्वान् हो, इसलिये तुम्हारा नाम वाचस्पति भी होगा। जो प्राणी तुम्हारे द्वारा स्थापित इस वृहस्पतीश्वर लिंगकी आराधना करेगा और तुम्हारे द्वारा की गयी स्तुतिका पाठ करेगा, उसे मनोवांछित फल मिलेगा तथा ग्रहजन्य कोई बाधा भी उसे पीड़ित नहीं करेगी। इतना कहकर भगवान् शंकरने सभी देवताओंको बुलाकर बृहस्पतिजीको देवाचार्य तथा देवगुरुके पदप्र प्रतिष्ठित कर दिया।

 

√•इसी प्रकारका दूसरा आख्यान स्कन्दपुराणके प्रभासखण्डमें प्राप्त होता है। उसमें बताया गया है कि बृहस्पतिजीने प्रभासक्षेत्रमें सोमनाथके समीपमें शिवलिंगकी स्थापनाकर महान् तप किया और भक्तिभावसे दीर्घकालतक उनकी आराधना की। तब सन्तुष्ट हुए देवेश्वर शिवने उन्हें ज्ञान प्रदान किया और वे देवताओंके गुरुपदपर प्रतिष्ठित हुए, साथ ही ग्रहोंमें उन्हें अत्यन्त महनीय पद प्राप्त हुआ। वहाँ स्थापित बृहस्पतीश्वरका दर्शन करनेसे मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता।

 

√••••ज्योतिषशास्त्रमें निरूपित आचार्य बृहस्पतिकी स्वरूपमीमांसा

 

√•ग्रहमण्डलमें देवगुरु बृहस्पतिका विशिष्ट स्थान है। ये अत्यन्त शुभकारक ग्रह हैं। इनका स्वभाव अत्यन्त सौम्य है। ये वाणी, विद्या, बुद्धि, शास्त्र, धर्म तथा ज्ञानके अधिष्ठाता हैं। कालात्मा पुरुषके शरीरमें ये ज्ञानशक्तिके प्रतिनिधि हैं। इनका वर्ण गौर-पीत है। इनका शरीर लम्बा तथा सिरके केश और नेत्र भूरे हैं, बुद्धि श्रेष्ठ है, कफप्रकृति है। ये पीतवस्त्र धारण करते हैं। आकाशतत्त्वके अधिपति हैं, इनकी दिशा ईशान है। ये सत्त्वगुणसे सम्पन्न तथा सभी शास्त्रोंको जाननेवाले हैं। बारह राशियोंमेंसे स्वीं राशि धनु तथा बारहवीं राशि (मीनके ये स्वामी हैं। इनका रत्न पुखराज है। इनके नामसे गुरुवारकी प्रवृत्ति है। इनका रथ अत्यन्त प्रकाशमान तथा तेजोमय है। ये पीले रंगके तथा वायुके समान वेगशाली आठ दिव्य अश्वोंसे जुते सुवर्णमय रथपर चलते हैं। ये एक राशिपर एक वर्ष रहते हैं। कालप्रवर्तनचक्रमें इनके मानसे बार्हस्पत्यमान चलता है। ये कर्क राशिमें उच्चके तथा मकर राशिमें नीचके कहे गये हैं। विंशोत्तरी महादशामें इनका समय सोलह वर्ष है। इनके अधिदेवता ब्रह्मा तथा प्रत्यधिदेवता इन्द्र हैं। नवग्रहमण्डलमें उत्तर दिशामें इनकी स्थापना होती है और इनकी आकृति अष्टकोणात्मक है। विग्रहरूपमें ये सिरपर स्वर्णमुकुट तथा गलेमें सुन्दर माला धारण करते हैं और कमलके आसनपर विराजमान रहते हैं। ये अपने चार हाथोंमें दण्ड, रुद्राक्षमाला, पात्र और वरदमुद्रा धारणकर सुशोभित रहते हैं। सूर्य, चन्द्र तथा मंगलसे इनकी नैसर्गिक मैत्री है। इनकी उपासनामें पीत वस्त्र तथा पीत पुष्पका उपयोग होता है। इनका वैदिक मन्त्र इस प्रकार है-

 

“ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्ञ्जनेषु।

यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥”

(ऋक्० २।२३।१५; यजु० २६।३)

 

√•नवग्रहमण्डलमें इनका आवाहन निम्न मन्त्रसे किया जाता है-

 

“देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम् ।

वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥”

 

“ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो ! इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः बृहस्पतिं आवाहयामि स्थापयामि।”

 

√• इनका तान्त्रिक मन्त्र है- ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः ।’

 

√|इस प्रकार नक्षत्रमण्डलमें अधिष्ठित होकर ग्रहश्रेष्ठ बृहस्पति जगत्‌के कल्याणमें सदा निरत रहते हैं और सद्बुद्धि तथा धार्मिक ज्ञान प्रदानकर भगवन्मार्गमें प्रेरित करते रहते हैं। कुण्डलीमें बृहस्पतिकी शुभ स्थिति सब प्रकारका अभ्युदय प्रदान करती है।

 

√•••बृहस्पतिजीका शास्त्रज्ञान और उनकी शिष्य- परम्परा

 

√•यतः आचार्य बृहस्पति देवताओंके ही नहीं, असुरों तथा मानवोंके भी गुरुभाक् पदसे सुशोभित हैं, अतः सभी उनके उपदेशोंसे उपकृत हुए हैं। जब-जब भी लोकमें धर्माचरणका ह्रास हुआ है, देवताओंपर विपत्ति आयी है,बृहस्पतिजीने ही उन्हें संकटसे उबारा है। उनके प्रमुख शिष्योंमें देवराज इन्द्र ही परिगणित हैं। इन्द्रको उन्होंने सम्पूर्ण व्याकरणशास्त्र प्रदान किया।

 

√•नीतिशास्त्रका परिज्ञान उन्होंने इन्द्रको कराया, बृहस्पतिप्रोक्त धर्मशास्त्र प्राप्त है, उसके श्रोता भी इन्द्र ही हैं। ज्योतिषशास्त्रपर मुहूर्तविज्ञानसे सम्बद्ध बृहस्पतिजीके नामसे बृहस्पतिसंहिता ग्रन्थ उपलब्ध है, उसे भी इन्द्रको सम्बोधित करके ही उपदिष्ट किया गया है। नारदसंहितामें ज्योतिषशास्त्रके जो अठारह आचार्य परिगणित हैं, उनमें बृहस्पतिजी विशेष मान्य हैं। वृहस्पतिप्रोक्त अर्थशास्त्र बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र कहलाता है। इनका (कोसलनरेश) राजर्षि वसुमनाको दिया गया राजधर्मका उपदेश इनके राजधर्मज्ञानका किंचित् परिचय देता है। मत्स्यपुराण (२५२।२-४) में बताया गया है कि वास्तुशास्त्रके अठारह आचार्योंमें बृहस्पति भी अन्यतम आचार्य हैं। बृहस्पतिजीने महाराज युधिष्ठिरको संसारकी असारता और अध्यात्मज्ञानका जो उपदेश प्रदान किया, वह बड़े ही महत्त्वका है।

 

√•देवपुरोहित बृहस्पतिजीके शिष्य थे राजा उपरिचरवसु। उन्होंने बृहस्पतिजीसे चित्रशिखण्डियोंके बताये हुए पांचरात्रशास्त्रका विधिवत् अध्ययन किया। ऐसे ही राजर्षि मान्धाता भी बृहस्पतिजीके शास्त्रज्ञानसे उपकृत थे।

 

√••••आचार्य बृहस्पति और उनकी बृहस्पतिसंहिता

 

√••आचार्य बृहस्पतिके नामसे बृहस्पतिसंहिता नामक एक संहिताग्रन्थ प्राप्त होता है, जो मुख्यरूपसे गर्भाधानादि संस्कारोंके मुहूर्तका परिज्ञान कराता है। इस ग्रन्थमें कुल २९ अध्याय हैं, किंतु अन्तिम अध्यायमें ग्रन्थ समाप्तिका कोई संकेत (पुष्पिका आदि) नहीं है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इसका शेष अंश कालके प्रभावसे विलुप्त हो गया है। मुख्य रूपसे यह ग्रन्थ मुहूर्तविधानका निरूपक है। प्रसंगवश इसमें होरा सम्बन्धी विषयों तथा धर्मशास्त्रीय विषयोंका भी स्थान-स्थानपर सन्निवेश हुआ है। यहाँ इस ग्रन्थकी कुछ बातें दी गयी हैं-

 

√•इसके प्रथम अध्यायमें कुल २७ श्लोक हैं, जिनमें ज्योतिषशास्त्रकी महिमा, ग्रहोंकी महिमा, दैवज्ञकी महिमा तथा गुरु और शुक्रादि ग्रहोंके द्वारा दोषोंके अपचय करनेमें बलाबलकी क्षमताका विचार किया गया है। इसके प्रारम्भमें ही बताया गया है कि द्विजातियोंके कल्याणके लिये इस ज्योतिषशास्त्रकी रचना स्वयं ब्रह्माजीने की है। यह शास्त्र नेत्ररूप है, वेदांग, है, ब्रह्मस्वरूप है तथा यज्ञके लिये हितकारी है-

 

“स्वयं स्वयम्भुवा सृष्टं चक्षुर्भूतं द्विजन्मनाम् ।

वेदाङ्गं ज्योतिषं ब्रह्मपरं यज्ञहितावहम् ॥”

(बृह०सं० १।३)

 

√•पुनः बृहस्पतिजी कहते है कि क्रिया तथा कालके साधक एवं तीनों लोकोंका हित करनेवाले वेदोंमें उत्तम इस शास्त्रको मैंने ब्रह्माजीसे प्राप्त किया- ‘मया स्वयम्भुवः प्राप्तम्।’

 

√•ग्रहोंकी महिमा तथा उनकी फलदातृत्व शक्तिका निरूपण करते हुए बृहस्पतिजी बताते हैं कि यह सम्पूर्ण संसार ग्रहोंके अधीन है, सभी श्रेष्ठजन भी ग्रहोंके ही अधीन होते हैं, कालतत्त्वका ज्ञान भी ग्रहोंके अधीन ही है और ग्रह ही कर्मोंका फल देनेवाले होते हैं, सृष्टि, पालन तथा संहार-यह सब ग्रहोंके अधीन है, कर्मोंके फलदाता ग्रह ही हैं और कर्मफलोंके सूचक भी ग्रह ही होते हैं, अशुभ संयोग भी ग्रहोंके अनुसार ही प्राप्त होता है और उन अशुभ संयोगोंको दूर करनेमें ग्रह ही सहायक होते हैं, अतः उन ग्रहोंकी उपासनाद्वारा उन्हें प्रसन्न करना चाहिये-

 

“ग्रहाधीनं जगत्सर्व ग्रहाधीनाः नरावराः ।

कालज्ञानं ग्रहाधीनं ग्रहाः कर्मफलप्रदाः ।।

सृष्टिरक्षणसंहाराः सर्वे चापि ग्रहानुगाः।

कर्मणां फलदातारः सूचकाश्च ग्रहाः सदा ।।

दुष्करं भवसंयोगं काले दुःस्थानमाययुः ।

तत्फलानन्वपायैव तदा पूज्यतमा ग्रहाः ।।”

(बृह०सं० ११६-७, ९)

 

√•बृहस्पतिजी बताते हैं कि पूर्वजन्ममें प्राणियोंके द्वारा जो भी शुभ अथवा अशुभ कर्म होते हैं, उसके फलको तथा फलभोगके समयको ज्योतिषशास्त्र उसी प्रकार स्पष्ट व्यक्त कर देता है, जैसे दीपक अँधेरेमें रखे पदार्थोंको स्पष्ट दिखा देता है-

 

“यदुपचितमन्यजन्मनि शुभाशुभं तस्य कर्मणः पक्तिम् ।

व्यञ्जयति शास्त्रमेतत् तमसि द्रव्याणि दीप इव॥”

(बृह०सं० १।८)

 

√•कालतत्त्वके विषयमें एक विशेष बात बताते हुए बृहस्पतिजी कहते हैं कि काल अर्थात् समयमें स्वभावसे ही शुभता एवं अशुभता रहती है, ऐसा नहीं कि कोई समय पूर्णरूपसे शुभ है और पूर्ण रूपसे अशुभ है, वह सब समय न पूर्णरूपसे दोषरहित होता है और न पूर्णरूपसे गुणरहित ही होता है, ऐसा वह अनादि तथा अविनाशी कालतत्त्व ग्रह-नक्षत्रादिके योगसे शुभता एवं अशुभताको प्राप्त करता है, सर्वथा निर्दुष्ट काल मिलना मुश्किल है। अतः कम-से-कम दोषवाले शुभ मुहूर्तको जानना चाहिये। अर्थात् जब दोष अति स्वल्प हों, नगण्य हों, ऐसा काल भी कार्यके लिये शुभ ही होता है। अतः ऐसे काल (मुहूर्त) का ज्ञानकर कार्यमें प्रवृत्त होना चाहिये।

 

√•बृहस्पतिजी कहते हैं कि मुहूर्त आदिके विषयमें ऐसे ही दैवज्ञसे पूछना चाहिये जो ज्योतिषशास्त्रको भलीभाँति जानता हो। जो नक्षत्रसूची हो अर्थात् ज्योतिषका किंचित् भी ज्ञान न रखनेपर भी सिद्धज्योतिषी होनेका दम्भ रखनेवाला हो, उससे ज्योतिषकी कुछ भी बात नहीं पूछनी चाहिये। पापोंका प्रायश्चित्त, रोगकी औषधि, समयकी जानकारी तथा धर्मशास्त्रका निर्णय जो तत्तद् शास्त्र बिना जाने बताता है, उसे ब्रह्मघाती समझना चाहिये अर्थात् शास्त्रज्ञान बिना इनके विषयमें निर्णय

देनेवालेको ब्रह्महत्याके समान पाप लगता है-

 

“प्रायश्चित्तं चिकित्सां च ज्योतिषं धर्मनिर्णयम् ।

बिना शास्त्रं हि यो ब्रूयात्तमाहुर्ब्रह्मघातकम् ।।”

(बृह०सं० १।२४)

 

√•इस प्रकार ज्योतिषशास्त्रके ज्ञानकी महिमा बताकर आगेके अध्यायोंमें शुभ एवं अशुभ योगोंका निर्णय किया गया है।

 

√•बृहस्पतिसंहिताके दूसरे अध्यायमें ५७ श्लोक हैं। यहाँ अश्व, गज तथा स्वर्ण आदि धातुओंके पात्रोंके संग्रहका मुहूर्त बताया गया है तथा आभूषणके क्रय- विक्रयके शुभ ग्रहयोग भी बताये गये हैं। आगे वार तथा नक्षत्रकी युतिसे होनेवाले शुभाशुभ योगोंको बताया गया है। जैसे सोमवारको यदि चित्रा, श्रवण और सौम्य नक्षत्र हो तो यह सुधायोग होता है, यह शुभ योग शुभकारक होता है-

 

“चित्राश्रवणसौम्याः स्युः यदि शीतांशुवारगाः ।

एते चापि सुधायोगाः सर्वशोभनशोभनाः ॥”

(बृह०सं० २।२७)

 

√•तीसरे अध्यायमें बृहस्पतिजीने ब्रह्माजीके द्वारा बताये गये तिथि, करण, राशि, अंश, लग्न तथा ग्रहयोगसे होनेवाले अशुभ योगोंका विस्तारसे निरूपण किया है। साथ ही यह भी बताया है कि गुरु तथा शुक्रके अस्त होनेपर विवाह तथा चूड़ाकरण, उपनयन नहीं करना चाहिये। ऐसा करनेसे नारीको वैधव्य प्राप्त होता है, शिशुका अनिष्ट होता है तथा वटुकी मृत्युकी आशंका रहती है। इसके साथ ही विष्टिदोष, विषनाड़ी, यमघण्ट आदि अशुभ योगों तथा दिग्दाह, उल्कापात आदि उत्पातोंका वर्णन करके उनमें शुभ कार्योंको करनेका निषेध किया है। इस अध्यायमें २४१ श्लोक हैं।

 

√•चौथे अध्यायमें बताया गया है कि काल स्वभावसे ही पूर्ण गुणयुक्त तथा पूर्णदोषयुक्त नहीं होता। अतः दोषोंको दूर करनेवाले वचनों (अपवादों) को मानकर दोषोंको दूर हुआ समझकर उन समयोंमें शुभ कार्य कर लेना चाहिये; क्योंकि ऐसा यदि नहीं किया जायगा तो अर्थात् सभी कार्योंके लिये शुभ मुहूर्त ही खोजा जायगा तो सभी कार्योंके लिये निर्दुष्ट समय कहाँ मिल पायेगा और कई आवश्यक एवं शुभ कार्य भी मुहूर्त न मिलनेके कारण पूर्ण होनेसे रह जायँगे। इस अध्यायमें १६९ श्लोक हैं।

 

√|पाँचवें अध्यायमें सभी शुभ कार्योंके प्रारम्भमें किये जानेवाले मंगलांकुर-रोपणकर्मका विधान बताया गया है। इस अध्यायमें ४१ श्लोक हैं।

 

√•अठारह श्लोकोंवाले छठे अध्यायमें सोलह संस्कारोंमेंसे प्रथम होनेवाले संस्कार गर्भाधान-संस्कारका मुहूर्त, ऋतु- काल तथा गर्भाधानके लिये योग्यायोग्य समयका निर्धारण किया गया है। इस अध्यायमें १८ श्लोक हैं।

 

√•सातवें अध्यायमें गर्भके यथायोग्य सुस्थापित हो जानेपर पुंसवन-संस्कारका समय तथा उस संस्कारको सम्पन्न करनेकी विधि बतायी गयी है। इस अध्यायमें २७ श्लोक हैं।

 

√•आठवें अध्यायमें सीमन्तोन्नयन संस्कारके कालका निरूपण है। कहा गया है कि सौरमाससे चौथे, छठे या आठवें महीनेमें सीमन्तोन्नयन संस्कार करना चाहिये। इस अध्यायमें २० श्लोक हैं।

 

√•नवें अध्यायमें २१ श्लोक हैं। इनमें जातकर्म- संस्कारकी व्याख्याके साथ ही उसकी विधि भी बतायी गयी है।

 

√•दसवें अध्यायमें नामकरणकी विधि तथा उसका समय निरूपित है, इस अध्यायमें ३४ श्लोक हैं।

 

√•ग्यारहवें अध्यायमें कर्णवेध-संस्कारका वर्णन है। इसके उद्देश्यमें बताया गया है कि इस संस्कारसे आरोग्य, लक्ष्मी तथा सुखकी प्राप्ति होती है। इसी अध्यायके अन्तमें शंखपात्रसे दुग्धपान, जन्मकालिक क्षौर तथा बालकके प्रथम बार खट्वारोहण कर्मका समय भी दिया गया है। इस अध्यायमें ३३ श्लोक हैं।

 

√•बारहवें अध्यायमें शिशुके प्रथम बार घरसे बाहर ले जाने अर्थात् निष्क्रमण-संस्कारके योगोंका वर्णन है। इस अध्यायमें १५ श्लोक हैं।

 

√•तेरहवें अध्यायमें अन्नप्राशन संस्कारका शुभ समय निरूपित है। प्रारम्भमें अन्नकी महिमा निरूपित है। इस अध्यायमें ५० श्लोक हैं।

 

√•चौदहवें अध्यायमें चूडाकर्म-संस्कारका निरूपण है और चूडाकर्म संस्कार कब, किन शुभ योगों में निषिद्ध समयोंका परिहार करके करना चाहिये, इसका विस्तारसे वर्णन है। यह भी बताया गया है कि अभिषेक, यज्ञान्त अवभृथस्नान तथा वृषोत्सर्गमें होनेवाले क्षौरकर्ममें मुहूर्तविचारका विधान नहीं है। इस अध्यायमें ९७ श्लोक हैं।

 

√•पन्द्रहवें अध्यायमें द्विजोंके द्विजत्वको सिद्ध करनेवाले उपनयन-संस्कारके शुभ समय तथा यज्ञोपवीत संस्कारकी विधिका वर्णन है। बृहस्पति कहते हैं कि माताके उदरसे तो केवल जन्म होता है। वास्तविक जन्म तो उपनयन- संस्कारमें होनेवाले वेदाध्ययनसे होता है- ‘जन्मन्युदरतो जन्म केवलं जन्म वेदतः’ (बृह०सं० १५।२)। इस अध्यायकी श्लोक संख्या १४० है।

 

√•सोलहवें अध्यायकी श्लोक संख्या ६२ है। इसके प्रारम्भमें ही बताया गया है कि यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न हो जानेके तुरंत बाद अथवा सूर्यास्तके समय यथाविधि सन्ध्यावन्दन करे और फिर प्रतिदिन सायं- प्रातः सन्ध्या करनी चाहिये-

“सन्ध्यां सम्यगुपासीत सायं प्रातर्दिने दिने॥”

(बृह०सं० १६।१)

 

√•तदनन्तर श्रवण या धनिष्ठा नक्षत्रमें पूर्णिमाको उपाकर्म (श्रावणी) कर्म करे- ये दोनों न मिलें तो हस्त नक्षत्रमें करे। तदनन्तर वेदारम्भ-संस्कार करना चाहिये। आगे वेदारम्भका काल दिया गया है।

 

√•सत्रहवें अध्यायमें ११ श्लोक हैं और इस अध्यायमें समावर्तन-संस्कारका शुभ योग निरूपित है।

 

√•अठारहवें अध्यायमें मुख्यरूपसे विवाह-संस्कारकी व्याख्या तथा विवाह-मुहूर्तीकी व्याख्या है। इस अध्यायकी श्लोक-संख्या ३३० है।

 

√•उन्नीसवें अध्यायमें केवल ६ श्लोक हैं। इसमें विवाह-संस्कारके बाद चौथे दिन होनेवाले चतुर्थी कर्मका विधान वर्णित है।

 

√•बीसवें अध्यायमें बताया गया है कि सम्पूर्ण अहोरात्र (रात-दिन) में ६० नाडियाँ होती हैं। एक नाडीका मान एक घटी (२४ मिनट) के बराबर होता है। सूर्योदयसे लेकर दूसरे सूर्योदयतक एक-एक घटीके क्रमशः सृष्टि, सिद्धि, नाश, मित्र, जीव, विग्रह आदि नाम होते हैं। इन नाडियोंमें इनके नामके अनुरूप कार्य करने चाहिये।

 

√•इक्कीसवें अध्यायमें २८१ श्लोक हैं। इसमें विशेषकर राजाओंके लिये तिथियों और नक्षत्रों तथा वारोंके योगसे यात्राके विधान तथा उसके लिये शुभ मुहूर्त बताये गये हैं।

 

√•बाईसवें अध्यायमें ३२ श्लोक हैं। सेवकको स्वामीका प्रथम दर्शन किन नक्षत्रोंमें, किन मुहूर्तोंमें प्रथम बार करना चाहिये, इसका विवेचन यहाँ किया गया है।

 

√•तेईसवाँ अध्याय विभिन्न देवताओंकी प्रतिष्ठासे सम्बद्ध है, इसमें १२१ श्लोक हैं।

 

√•चौबीसवें अध्यायमें विशेष रूपसे राजाओंके अभिषेकका काल निरूपित है। इस अध्यायमें ३४ श्लोक हैं।

 

√•पचीसवें अध्यायमें पुण्यप्रद कालोंका निरूपण है। विशेष समयोंमें तीर्थोंका जल विशेष पावन हो जाता है, अतः उन समयोंमें गंगादि तीर्थजलों तथा पुण्यप्रद तीर्थस्थानोंकी यात्रा करनी चाहिये। इस अध्यायमें २२ श्लोक हैं।

 

√•छब्बीसवें अध्यायमें पवित्रारोपण कर्मका विधान तथा उसका काल निर्दिष्ट है। इसमें कुल १५ श्लोक हैं।

 

√•सत्ताईसवें अध्यायमें बताया गया है कि विविध भौमान्तरिक्ष उत्पातों, महामारी तथा ग्रहपीड़ाजन्य समष्टिगत विकारोंके दोषकी निवृत्तिके लिये मातृका-शान्ति करनी चाहिये। ब्रह्माणी, इन्द्राणी, वाराही, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी तथा रौद्र चामुण्डा- ये सात मातृकाएँ बतायी गयी हैं। इनमेंसे प्रत्येक मातृकासे सात-सात मातृकाओंकी उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार मातृकाओंकी संख्या ४९ है। इस अध्यायमें २७ श्लोक हैं।

 

√•अट्ठाईसवाँ अध्याय सबसे बड़ा है, इसमें ९९६ श्लोक हैं। इस अध्यायमें विशेषरूपसे विविध कर्मोंके मुहूर्तीका वर्णन हुआ है। कृषिकार्य, बीजोंके वपन, मिट्टीके शोधन, औषधिनिर्माण, स्वर्णाभूषणनिर्माण, नवान्नभक्षण, गृहारम्भ, वृक्षच्छेदन, शिलान्यास, गृहाच्छादन, पशु तथा विविध वस्तुओंके क्रय-विक्रय, पशुसंग्रह, रोगमुक्तिस्नान, नवीनवस्त्रधारण, संगीतशिक्षण, गोशाला आदिके निर्माण आदिके मुहूर्तीका विस्तारसे वर्णन किया गया है। विविध नक्षत्रोंमें करणीय कर्मोंका वर्णन है। साथ ही दिन-रातके तीस मुहूर्तोंके नाम तथा उनमें किये जानेवाले कर्मों तथा राजासे सम्बन्धित विविध कर्मोंका निरूपण है।

 

√•उनतीसवें अध्यायमें ५८ श्लोक हैं। यह अन्तिम अध्याय है। यहाँ संक्षेपमें श्राद्धविधान निरूपित है। बताया गया है कि प्रेत और पितृभेदसे दो प्रकारका श्राद्ध होता है। वैश्वदेवसे रहित श्राद्ध प्रेतश्राद्ध कहलाता है और विश्वेदेवयुक्त श्राद्ध पितृश्राद्ध कहा गया है। श्राद्धके लिये कुतपवेला, अमावास्या तिथि, दक्षिण दिशा प्रशस्त है। इस अध्यायमें ग्रन्थकी पूर्णता होती है।

 

√•इस प्रकार विषयवस्तुकी वैविध्यताको देखनेसे यह प्रतीत होता है कि मुहूर्तप्रधान होनेपर भी यह ग्रन्थ अनेक विषयोंको अपनेमें संयोजित किये हुए है। अन्तमें कोई पुष्पिका न होनेसे यह भी आभास होता है कि यह संहिता अभी पूर्ण नहीं हुई है।

 

√•••मौसम-ज्ञानकी जानकारी देनेवाला ग्रन्थ – गुरुसंहिता।

 

√•मौसमविज्ञान एवं ऋतुचक्र, विशेष रूपसे वर्षाज्ञानकी जानकारी देनेवाला एक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो गुरुसंहिताके नामसे प्रसिद्ध है। चूंकि ‘गुरु’ यह नाम मुख्य रूपसे देवोंके गुरु, आचार्य एवं पुरोहित बृहस्पतिजीका वाचक है। अतः इस ग्रन्थको देवाचार्य बृहस्पतिका माना जा सकता है।उपलब्ध गुरुसंहितामें ४९२ श्लोक हैं। बीच-बीचमें विषयोंका विभाजन तो है, किंतु अध्याय-संख्या नहीं लगी है। यत्र-तत्र शिव-पार्वती-संवादके रूपमें ग्रन्थ उपनिबद्ध है तथा महर्षि गर्गके वचनोंका भूयशः सन्निवेश हुआ है। यथा ‘इति गर्गेण भाषितम्’ इत्यादि ।

 

√•मुख्य रूपसे यह ग्रन्थ त्रिस्कन्धज्योतिषके संहितास्कन्धके विषयोंका विवेचन करता है। कृषि वर्षाके ऊपर आश्रित है और वर्षा मेघोंद्वारा होती है। अतः मेघोंके स्वरूप, मेघोंके प्रकार, मेघको देखनेसे वर्षण एवं अवर्षणका ज्ञान, अवर्षणका फल, धान्यकी महँगी एवं सस्तीका विचार, विद्युत् एवं वायुसे वर्षाका ज्ञान, ग्रहोंके चारसे मौसमकी जानकारी, संक्रान्तिमें वृष्टिका फल तथा काकनिलय (कौएके घोंसले) आदिसे वर्षाके ज्ञानके साधनोंका इसमें समावेश हुआ है। इस प्रकार मौसम, वृष्टि तथा ऋतुचक्र एवं अनेक प्रकारके उत्पातोंके कारणोंकी जानकारी देनेवाला यह लघु ग्रन्थ ज्योतिष- वाङ्मयका महत्त्वका ग्रन्थ है। प्राचीनकालमें कृषक लोग अपने कृषिकार्यमें इस जानकारीका विशेष उपयोग करते थे। यहाँ इस ग्रन्थकी कुछ बातें संक्षेपमें दी जाती हैं-

 

√•इसमें कार्तिकमाससे प्रारम्भकर आश्विनमासतक बारहमासोंमें वर्षाज्ञानका विवरण है, जो ३४३ श्लोकोंमें है। इसके अनन्तर मेघदर्शन, सद्यो गर्भलक्षण, वायुधारण, विद्युत्फल, आर्द्राफल, शुक्रचार, राहुचार, केतुचार तथा संक्रान्तिफल निरूपित है। अन्तमें काकनिलय-शुभाशुभ- विचार तथा काकाण्डात्फलविचार दिया हुआ है।

 

√•इसका प्रारम्भिक श्लोक इस प्रकार है-

 

“गार्भिके कार्तिके मासि चतुर्मासेषु वर्षति।

सुभिक्षं जायते तत्र शस्यसम्पत्तिरुत्तमा ।”

(गुरुसंहिता १)

 

√•तदनन्तर मेघोंका वर्णन करते हुए कहा गया है कि मेघ श्वेत, पीत, कृष्ण, ताम्र तथा सिन्दूरवर्णके होते हैं। मार्गशीर्षमासके विवरणमें बताया गया है कि मार्गशीर्ष आदि पाँच मासोंके शुक्लपक्षमें यदि किसी तिथिका क्षय होता है तो दुर्भिक्ष होता है। राजाके छत्र-भंग होनेका भय रहता है तथा युद्धकी सम्भावना होती है-

 

“मार्गादिपञ्चमासेषु शुक्लपक्षे तिथिक्षयः ।

दुर्भिक्षं छत्रभंगो वा जायते राजविग्रहः ।।”

(गु०सं० २७)

 

√•आगे बताया गया है कि मार्गशीर्षमासकी सप्तमी तथा नवमी तिथिको यदि ईशान दिशामें मेघमण्डल दिखलायी दे तो अल्पवर्षा होती है अथवा तेज हवा चलती है-

 

“मार्गशीर्षे यदा मासि सप्तमी नवमी दिने।

ईशानादिसमाश्रित्य दृश्यते मेघमण्डलम् ।।

स्तोकं वर्षति पर्जन्योऽथवा वातमादिशेत् ।”

(गु०सं० २८-२९)

 

√•यदि पौषमासमें बिजलीकी गरजके साथ वृष्टि होती है और सुखदायी वायु प्रवाहित होती है तो समझना चाहिये कि अतिवृष्टि होगी और अनाज महँगा होगा-

 

“गर्जते वर्षते पौषे विद्युद् वायुश्च शोभनः ।

अतिवृष्टिं विजानीयाद् धान्यं याति महर्घताम्॥”

(गु०सं० ४३)

 

√•यदि माघमासकी संक्रान्तिको वर्षा हो तो समझना चाहिये कि गायें अधिक दूध देनेवाली होंगी तथा भूमिमें अधिक अन्न उपजेगा-

 

“माघमासे तु संक्रान्तौ वर्षते माधवो यदा।

बहुक्षीरप्रदा गावो बहुशस्या वसुन्धरा ॥”

(गु० सं० ९८)

 

√•आषाढ़मासके प्रथम पक्षमें यदि सूर्यमण्डल बादलोंसे रहित हो, बिजली भी न गरजती हो तथा वृष्टि भी न होती हो तो समझना चाहिये इन्द्रदेव दो मासतक वर्षा नहीं करेंगे-

 

आषाढ़मासे प्रथमे च पक्षे निरभ्रदृष्टे रविमण्डले च।

न विद्युतो गर्जति नैव वृष्टि-र्मासद्वयं वर्षति नैव देवः ॥”

(गु०सं० २३६)

 

√•बादलोंकी आकृतिको देखनेसे वर्षाज्ञानके विषयमें बताया गया है कि यदि सन्ध्याकालमें पूर्व दिशामें आकाश मेघोंसे आच्छादित हो और वे मेघ ऊँट, हाथी, वराहमुख, महिष, पर्वत तथा वृषभकी आकृति एवं आभाके समान दिखायी दें तो समझना चाहिये कि निश्चित ही वर्षा होगी-

 

“पूर्वस्यां यदि सन्ध्यायां मेघसञ्छादितं नभः ।।

केचिदुष्ट्समा मेघाः केचित्कुञ्जरसन्निभाः ।

केचिद्वै शूकरमुखाः केचिन्महिषसन्निभाः ।।

केचिद् वै पर्वताकारा केचिद् वृषभसन्निभाः ।

एतद्वर्णाश्च ये मेघा वर्षन्ते नात्र संशयः ॥”

(गु० सं०३४४-१४६)

 

√•••••काकनिलयविचार

 

√•कौएके घोंसलेसे शुभाशुभ-विचार भी इसमें बताया गया है। ईश्वर (शिव) पार्वतीसे कहते हैं- हे प्रिये! यदि वृक्षकी पूर्वकी शाखामें कौआ घोंसला बनाये तो यह समझना चाहिये कि उस वर्ष सुभिक्ष, क्षेम तथा आरोग्य होता है-

 

“वृक्षस्य पूर्वशाखायां निलयं कुरुते खगः।

सुभिक्षं क्षेममारोग्यं तस्मिन् वर्षे. न संशयः ॥”

(गु० सं० ४६५)

 

√•इसी प्रकार आगे बताया गया है कि वृक्षके अग्निकोणकी शाखामें कौआ घोंसला बनाये तो मेघ कम वृष्टिवाले होते हैं और दुर्भिक्ष होता है। दक्षिण भागमें घोंसला बनाये तो दो मासतक वर्षा होती है। तदनन्तर पाला (तुषार) पड़ता है। नैर्ऋत्य दिशामें घोंसला बनाये तो पहले तो वर्षा नहीं होती, लेकिन बादमें खूब वर्षा होती है। वृक्षके पश्चिम भागमें घोंसला बनाये तो अतिवृष्टि, वायव्यकोणमें बनाये तो वातवृष्टि, उत्तरमें बनाये तो अतिवृष्टि, वायव्यमें बनाये तो सुभिक्ष, ईशानमें मध्यमवृष्टि, ऊपरकी ओर बनाये तो बराबर वृष्टि होती है और पृथ्वी शस्यवती होती है और यदि किसी वृक्षके कोटर अथवा घरमें अथवा दक्षिण दिशाकी ओर भूमिमें कौआ घोंसला बनाये तो भयंकर अकाल पड़ता है और राजयुद्ध होता है। ऐसे ही यदि नदीके किनारे जमीनपर घोंसला बनाये तो उस वर्ष सूखा पड़ता है।

(गु०सं० ४६६-४७६)

 

√•इसमें बताया गया है कि बिना मांसके उद्देश्यसे यदि कहींपर कौए अचानक इकट्ठे हों तो समझना चाहिये कि शीघ्र ही अकाल पड़नेवाला है (गु०सं० ४७७)। यदि वृक्षकी शाखापर बैठा हुआ कौआ अपने पंखोंको जोर-जोरसे फड़‌फड़ाता हो तो समझना चाहिये कि शीघ्र ही वर्षा होगी (गु० सं० ४७९)। इस प्रकार कौएके द्वारा वर्षाकालमें महावृष्टि, शीतकालमें दुर्दिन तथा ग्रीष्मकालमें अत्यधिक घाम आदिका ज्ञान करना चाहिये। वर्षाज्ञानकी इस प्रकारको विचित्र एवं रोचक बातें इस गुरुसंहितामें आयी हैं।

 

√••••बृहस्पतिप्रोक्त उपदेशामृत।

 

√•वाणीका प्रयोग कैसे करें- बृहस्पतिजी हमें यह शिक्षा देते हैं कि लोकव्यवहारमें वाणीका प्रयोग बहुत ही विचारपूर्वक करना चाहिये। बृहस्पतिजी स्वयं भी अत्यन्त मृदुभाषी एवं संयतचित्त हैं। वे देवराज इन्द्रसे कहते हैं- राजन् ! आप तो तीनों लोकोंके राजा है, अतः आपको वाणीके विषयमें बहुत सावधान रहना चाहिये; क्योंकि जो व्यक्ति दूसरोंको देखकर पहले स्वयं बात करना प्रारम्भ करता है और मुसकराकर ही बोलता है, उसपर सब लोग प्रसन्न हो जाते हैं-

 

“यस्तु सर्वमभिप्रेक्ष्य पूर्वमेवाभिभाषते ।

स्मितपूर्वाभिभाषी च तस्य लोकः प्रसीदति ॥”

(महा०शान्ति० ८४।६)

 

√•इसके विपरीत जो सदा भौहें टेढ़ी किये रहता है, किसीसे कुछ बातचीत नहीं करता, बोलता भी है तो टेढ़ी या व्यंग्यमय वाणी बोलता है, शान्त मधुर वचन न बोलकर कर्कश वचन बोलता है, वह सब लोगोंके द्वेषका पात्र बन जाता है-

“यो हि नाभाषते किञ्चित् सर्वदा भुकुटीमुखः।

द्वेष्यो भवति भूतानां स सान्त्वमिह नाचरन् ।”

(महा०शान्ति० ८४।५)

 

√•जीवका सच्चा साथी कौन है-एक बार धर्मराज युधिष्ठिरने बृहस्पतिजीसे कहा- भगवन्! आप सम्पूर्ण धर्मोंके ज्ञाता, कालकी गतिको जाननेवाले तथा सब शास्त्रोंके विद्वान् हैं, अतः बताइये कि माता-पिता, पुत्र, पत्नी, गुरु, मित्र तथा बन्धु-वान्धव-इनमेंसे मनुष्यका सच्चा साथी कौन है? लोग अपने प्रियजनके मृत शरीरको काष्ठ तथा ढेलेके समान त्यागकर चले जाते हैं. तब इस जीवके साथ कौन जाता है?

 

√•इसपर बृहस्पतिजीने कहा- राजन् ! प्राणी अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरता है, अकेला ही दुःखसे पार होता है और अकेला ही दुर्गति भोगता है। पिता-माता, भाई-बन्धु कोई उसके सहायक नहीं होते। केवल किया हुआ धर्माचरण ही जीवात्माके साथ जाता है, अतः धर्म ही सच्चा सहायक है, मनुष्योंको सदा धर्मका ही सेवन करना चाहिये-

 

“तैस्तच्छरीरमुत्सृष्टं धर्म एकोऽनुगच्छति ॥

तस्माद्धर्मः सहायश्च सेवितव्यः सदा नृभिः।”

(महा० शान्ति० १११।१४-१५)

 

√•••सज्जनोंका ही साथ करें- गरुडपुराणके आचारकाण्डमें बृहस्पतिजीद्वारा देवराज इन्द्रको दिया गया उपदेश सुभाषितोंका आकर है, कुछ वचन यहाँ प्रस्तुत हैं। पहले ही सुभाषितमें सज्जनोंके सहवास (संगति) की महिमा बताते हुए कहा गया है कि जो मनुष्य पुरुषार्थचतुष्टयकी सिद्धि चाहता है, उसे सदैव सज्जनोंका ही साथ करना चाहिये। दुर्जनोंके साथ रहनेसे इहलोक तथा परलोकमें भी हित नहीं है-

 

“सद्धिः सङ्गं प्रकुर्वीत सिद्धिकामः सदा नरः ।

नासद्धिरिहलोकाय परलोकाय वा हितम् ॥”

(गरुडपु० आ० १०८।२)

 

√••नित्य स्मरण रखनेयोग्य बात क्या है- बृहस्पतिजी बताते हैं कि मनुष्योंको दुर्जनोंकी संगतिका परित्याग करके साधुजनोंकी संगति करनी चाहिये और दिन-रात पुण्यका संचय करते हुए अपनी एवं सांसारिक भोगोंकी अनित्यताका नित्य स्मरण करते रहना चाहिये-

 

“त्यज दुर्जनसंसर्ग भज साधुसमागमम् ।

कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यताम् ॥”

(गरुडपु० आ० १०८।२६)

 

 

 

*_हर हर महादेव🙏_*

 

 

👉 *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।।*

🪷🪴 *विशेष आग्रह* 🪴🪷

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🙏🪴 *आज का दिन आपके लिए मंगलमय हो।*🪴🙏

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🐑 *_मेष राशि :चू, चे, चो, ल, ली, लू, ले, लो,अ।आपकी ऊर्जा का स्तर ऊँचा रहेगा। आपको अपने अटके कामों को पूरा करने में इसका इस्तेमाल करना चाहिए। अगर आप लोन लेने वाले थे और काफी दिनों से इस काम में लगे थे तो आज के दिन आपको लोन मिल सकता है। बच्चे आपके दिन को बहुत मुश्किल बना सकते हैं। प्यार-दुलार के हथियार का इस्तेमाल कर उन्हें समझाएँ और अनचाहे तनाव से बचें। याद रखें कि प्यार ही प्यार को पैदा करता है। आपके जीवन-साथी के पारिवारिक सदस्यों की वजह से आपका दिन थोड़ा परेशानीभरा हो सकता है। सेमिनार और गोष्ठियों में हिस्सा लेकर आज आप कई नए विचार पा सकते हैं। आज कुछ ऐसा दिन है जब चीजें उस तरह नहीं होंगी, जैसी आप चाहते हैं। आज आपका जीवनसाथी आपकी सेहत के प्रति असंवेदनशील हो सकता है।_*

 

*_उपाय :- ग़रीबों में केसर निर्मित मीठा हलवा बनाकर बांटने से लव लाइफ में प्यार बना रहता है।_*

 

🐂 *_वृषभ राशि :इ, उ, ए, ओ, ब, बी ,बू, बे ,बो।विश्वास कीजिए कि ख़ुद पर यक़ीन ही बहादुरी की असली परख है, क्योंकि इसी के बल पर आप लम्बे वक़्त से चली आ रही बीमारी से निजात पा सकते हैं। हालाँकि आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा, लेकिन पैसे का लगातार पानी की तरह बहते जाना आपकी योजनाओं में रुकावट पैदा कर सकता है। पारिवारिक ज़िम्मेदारियों का बोझ बढ़ेगा, जो आपको तनाव दे सकता है। इकतरफ़ा प्यार आपके लिए काफ़ी ख़तरनाक साबित होगा। काम पर लोगों के साथ मेलजोल में समझ और धैर्य से सावधानी बरतें। आज आप सब कामों को छोड़कर उन कामों को करना पसंद करेंगे जिन्हें आप बचपन के दिनों में करना पसंद करते थे। आपको अपने जीवनसाथी का सख़्त और रुखा पहलू देखने को मिल सकता है, जिसके चलते आप असहज महसूस करेंगे।_*

 

*_उपाय :- पॉंवों के दोनों अंगूठों पर काला व सफेद धागा मिलाकर बाँधने से स्वास्थ्य में सुधार होगा।_*

 

👩‍❤️‍👨 *_मिथुन राशि :का,की , कु, घ, ङ ,छ, के, को, ह।किसी दोस्त की ज्योतिषीय सलाह आपकी सेहत के लिए काफ़ी उपयोगी रहेगी। आपका पैसा तभी आपके काम आएगा जब आप उसको संचित करेंगे यह बात भली भांति जान लें नहीं तो आपको आने वाले समय में पछताना पड़ेगा। अपने परिवार की भलाई के लिए मेहनत करें। आपके कामों के पीछे प्यार और दूरदृष्टि की भावना होनी चाहिए, न कि लालच का ज़हर। अपनी बातों को सही साबित करने के लिए आज के दिन आप अपने संगी से झगड़ सकते हैं। हालांकि आपका साथी समझदारी दिखाते हुए आपको शांत कर देगा। अगर आपको एक दिन की छुट्टी पर जाना है तो चिंता न करें, आपकी ग़ैरहाज़िरी में सभी काम ठीक से चलते रहेंगे। और अगर किसी ख़ास वजह से कोई परेशानी खड़ी भी हो जाए, तो आप लौटने पर उसे आसानी से हल कर लेंगे। कर्म-काण्ड/हवन/पूजा-पाठ आदि का आयोजन घर मे होगा। आप अपने जीवनसाथी के प्यार की गर्माहट महसूस कर सकते हैं।_*

 

*_उपाय :- घर में एक्वेरियम स्थापित करके मछलियों को चारा खिलाने से धन वृद्धि होगी।_*

 

🦀 *_कर्क राशि :ही, हू, हे, हो, डा, डी ,डू, डे,डो।पीने की आदत को अलविदा कहने के लिए बहुत ही अच्छा दिन है। आपको समझना चाहिए कि शराब सेहत की सबसे बड़ी दुश्मन है और यह आपकी क्षमताओं पर भी कुठाराघात करती है। बैंक से जुड़े लेन-देन में काफ़ी सावधानी बरतने की ज़रूरत है। अगर आप दफ़्तर में अतिरिक्त समय लगाएंगे, तो आपकी घरेलू ज़िंदगी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। दिन को ख़ास बनाने के लिए स्नेह और उदारता के छोटे-छोटे तोहफ़े लोगों को दें। कार्यक्षेत्र में किसी विशेष व्यक्ति से आपकी मिलाक़ात हो सकती है। वक्त सेे हर काम को पूरा करना ठीक होता है अगर आप ऐसा करते हैं तो आप अपने लिए भी वक्त निकाल पाते हैं। अगर आप हर काम को कल पर टालते हैं तो अपने लिए आप कभी समय नहीं निकाल पाएंगे। आपको ख़ुश करने के लिए आपका जीवनसाथी काफ़ी कोशिशें कर सकता है।_*

 

*_उपाय :- पीपल के वृक्ष को केसर से तिलक कर पीले कच्चे धागे से बाँधने से पारिवारिक जीवन में खुशहाली आएगी।_*

 

🦁 *_सिंह राशि :मा, मी, मू, में, म़ो, ट, टी, टू, टे।सेहत अच्छी रहेगी। कार्यक्षेत्र में या करोबार में आपकी कोई लापरवाही आज आपको आर्थिक नुक्सान करा सकती है। जिन लोगों से आपकी मुलाक़ात कभी-कभी ही होती है, उनसे बातचीत और संपर्क करने के लिए अच्छा दिन है। किसी से अचानक हुई रुमानी मुलाक़ात आपका दिन बना देगी। कार्यक्षेत्र में समझ-बूझ के उठाए गए आपके क़दम फलदायी होंगे। इससे आपको समय पर योजनाएँ पूरी करने में मदद मिलेगी। साथ ही नई परियोजनाएँ शुरू करने के लिए सही समय है। घर में पड़ी कोई पुरानी वस्तु आज आपको मिल सकती है जिससे आपको अपने बचपन के दिनों की याद सता सकती है और आप उदासी के साथ अपने दिन का काफी समय अकेले बिता सकते हैं। लंबे अरसे के बाद जीवनसाथी के साथ काफ़ी वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिल सकता है।_*

 

*_उपाय :- सुबह उठते साथी ही ॐ हं हनुमते नमः का 11 बार उच्चारण करने से आर्थिक स्थिति अच्छी होगी।_*

 

👰🏻‍♀ *_कन्या राशि :टो,पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, प़ो।आप खाली समय का आनंद ले सकेंगे। यदि शादीशुदा हैं तो आज अपने बच्चों का विशेष ख्याल रखें क्योंकि यदि आप ऐसा नहीं करते तो उनकी तबीयत बिगड़ सकती है और आपको उनके स्वास्थ्य पर काफी पैसा खर्च करना पड़ सकता है। एक पारिवारिक आयोजन में आप सभी के ध्यान का केन्द्र होंगे। रोमांस के लिहाज़ से बहुत अच्छा दिन नहीं है, क्योंकि आप आज सच्चा प्यार ढूंढने में विफल हो सकते हैं। साझीदारी के लिए अच्छे मौक़े हैं, लेकिन भली-भांति सोचकर ही क़दम बढ़ाएँ। आज आप फुर्सत के क्षणों में कोई नया काम करने का सोचेंगे लेकिन इस काम में आप इतना उलझ सकते हैं कि आपके जरुरी काम भी छूट जाएंगे । अपने जीवनसाथी की नुक़्ताचीनी से आप आज परेशान हो सकते हैं, लेकिन वह आपके लिए कुछ बढ़िया भी करने वाला है।_*

 

*_उपाय :- जेब में हरे रंग का रुमाल रखना आर्थिक स्थिति के लिए शुभ है।_*

 

⚖️ *_तुला राशि :रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते।तली-भुनी चीज़ों से दूर रहें और नियमित व्यायाम करते रहें। अपनेे लिए पैसा बचाने का आपका ख्याल आज पूरा हो सकता है। आज आप उचित बचत कर पाने में सक्षम होंगे। रिश्तेदारों के यहाँ छोटी यात्रा आपके भागदौड़ भरे दिन में आराम और सुकून देने वाली साबित होगी। आप और आपका महबूब आज प्यार के समुन्दर में गोते लगाएंगे और प्यार की मदहोशी को महसूस करेंगे। जो काम आपने किया है, उसका श्रेय किसी और को न ले जाने दें। आज खाली वक्त का सही उपयोग करने के लिए आप अपने पुराने मित्रों से मिलने का प्लान बना सकते हैं। आपका जीवनसाथी अन्य दिनों की अपेक्षा आपका ज़्यादा ख़्याल रखेगा।_*

 

*_उपाय :- गंगाजल का सेवन करना हेल्थ के लिए शुभ होगा।_*

 

🦂 *_वृश्चिक राशि :तो,न, नी, नू, ने, नो, या, यी , यु।कुछ दिलचस्प पढ़कर थोड़ी दिमाग़ी कसरत करें। अपने अतिरिक्त धन को सुरक्षित जगह पर रखिए, जो आने वाले वक़्त में आप फिर पा सकें। ऐसे कामों में सहभागिता करने के लिए अच्छा समय है, जिसमें युवा लोग जुड़े हों। आज रोमांस आपके दिलो-दिमाग़ पर छाया रहेगा। योग्य कर्मियों को पदोन्नति या आर्थिक मुनाफ़ा हो सकता है। आपके घर वाले आज आपसे कई परेशानियां शेयर करेंगे लेकिन आप अपनी ही धुन में मस्त रहेंगे और खाली समय में कुछ ऐसा करेंगे जो करना आपको पसंद है। आपका जीवनसाथी किसी फ़रिश्ते की तरह आपका बहुत ध्यान रखेगा।_*

 

*_उपाय :- शुद्ध सूती कपडा और नमकीन गरीब स्त्रियों को समय-समय पर दान करने से आर्थिक स्थिति अच्छी होगी।_*

 

🏹 *_धनु राशि :ये,यो, भा, भी,, भू, ध,फ, ढ़, भे।गाड़ी चलाते समय सावधान रहें। आपको कई स्रोतों से आर्थिक लाभ होगा। ऐसे कामों में सहभागिता करने के लिए अच्छा समय है, जिसमें युवा लोग जुड़े हों। कोई पौधा लगाएँ। काम की अधिकता के बावजूद भी आज कार्यक्षेत्र में आपमें ऊर्जा देखी जा सकती है। आज आप दिये गये काम को तय वक्त से पहले ही पूरा कर सकते हैं। रात के समय आज आप घर के लोगों से दूर होकर अपने घर की छत या किसी पार्क में टहलना पसंद करेंगे। जीवनसाथी के कारण कुछ नुक़सान हो सकता है।_*

 

*_उपाय :- भगवान में विश्वास रखें और मानसिक हिंसा से बचें, इससे स्वास्थ्य बेहतर होगा।_*

 

🐊 *_मकर राशि :भो,ज, जी,जू,जे जो, खी,खू, खे, खो, गा, गी।अपने जीवनसाथी के मामले में ग़ैर-ज़रूरी टांग अड़ाने से बचें। अपने काम-से-काम रखना बेहतर रहेगा। कम-से-कम दख़ल दें, नहीं तो इससे निर्भरता बढ़ सकती है। आप उन योजनाओं में निवेश करने से पहले दो बार सोचें जो आज आपके सामने आयी हैं। पारिवारिक सदस्यों से मतभेद ख़त्म कर आप अपने उद्देश्यों की पूर्ति आसानी से कर सकते हैं। किसी से आँखें चार होनी की काफ़ी संभावना है। करिअर के नज़रिए से शुरू किया सफ़र कारगर रहेगा। लेकिन ऐसा करने से पहले अपने माता-पिता से इजाज़ता ज़रूर ले लें, नहीं तो बाद में वे आपत्ति कर सकते हैं। आज सोच-समझकर क़दम बढ़ाने की ज़रूरत है- जहाँ दिल की बजाय दिमाग़ का ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। अपने जीवनसाथी की ख़ूबियों के चलते आप एक बार फिर उनके प्यार में गिरफ़्तार हो सकते हैं।_*

 

*_उपाय :- उबले हुए मूँग किसी गरीब व्यक्ति को खिलाने से स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।_*

 

⚱️ *_कुम्भ राशि :गू, गे, गो, सा, सि, सू, से, सो, द।स्वयं को शांत बनाए रखें क्योंकि आज आपको ऐसी कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिनके चलते आप काफ़ी मुश्किल में पड़ सकते हैं। ख़ास तौर पर अपने ग़ुस्से पर क़ाबू रखें, क्योंकि यह और कुछ नहीं बल्कि थोड़ी देर पागलपन है। व्यापाार में मुनाफा आज कई व्यापारियों के चेहरे पर खुशी ला सकता है। बच्चों का स्कूल से जुड़ा काम पूरा करने के लिए मदद देने का वक़्त है। कोई आपको प्यार से दूर नहीं कर सकता है। व्यवसायियों के लिए अच्छा दिन है, क्योंकि उन्हें अचानक बड़ा फ़ायदा हो सकता है। दिन की शुरुआत भले ही थोड़ी थकाऊ रहे लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ेगा आपको अच्छे फल मिलने लगेंगे। दिन के अंत में आपको अपने लिए समय मिल पाएगा और आप किसी करीबी से मुलाकात करके इस समय का सदुपयोग कर सकते हैं। आप और आपका जीवनसाथी मिलकर वैवाहिक जीवन की बेहतरीन यादें रचेंगे।_*

 

*_उपाय :- ‘मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं।’_*

 

🐬 *_मीन राशि:दी, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, च, ची।आपका प्रबल आत्मविश्वास और आज के दिन का आसान कामकाज मिलकर आपको आराम के लिए काफ़ी वक़्त देंगे। आज आपको समझ आ सकता है कि धन को बिना सोच विचारे खर्च करना आपको कितना नुक्सान पहुंचा सकता है. जीवनसाथी से झगड़ा मानसिक तनाव की ओर ले जा सकता है। बेकार का तनाव लेने की ज़रूरत नहीं है। ज़िंदगी का एक बड़ा सबक़ इस बात को मान लेना है कि बहुत-सी चीज़ों को बदलना नामुमकिन है। आपको अपनी ओर से सबसे अच्छा बर्ताव करने की ज़रूरत है, क्योंकि आपके प्रिय का मूड बहुत अनिश्चित होगा। ऐसे लोगों से साथ जुड़ें जो स्थापित हैं और भविष्य के रुझानों को समझने में आपकी मदद कर सकते हैं। अपना समय और ऊर्जा दूसरों की मदद करने में लगाएँ, लेकिन ऐसे मामलों में पड़ने से बचें जिनसे आपका कोई लेना-देना नहीं है। आपका जीवनसाथी रोज़ाना की ज़रूरतों को पूरा करने से अपने हाथ पीछे खींच सकता है, जिसके चलते आपका मन उदास होने की संभावना है।_*

 

*_उपाय :- पारिवारिक जीवन की खुशहाली के लिए घर में क्रीम रंग के परदे लगाएं।_*

 

*_🪴🪷⭐जय श्री राम⭐🪷🪴_*

 

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तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्‌ ।

सुखसङ्‍गेन बध्नाति ज्ञानसङ्‍गेन चानघ ॥

*🙏 श्री काशी विश्वनाथ कीजय हो*

🚩🙏🏻 *धर्मो रक्षति रक्षितः ࿗ सुखस्य मूलं धर्मः* 🚩

Taja Report
Author: Taja Report

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