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कृषि क्षेत्र में सुधार का विरोध करना किसान हित के विपरीत: अशोक बालियान

मुजफ्फरनगर। अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा कि देश के कुछ किसान संगठनों द्वारा केंद्र सरकार की कुछ समय पहले जारी की गयी कृषि विपणन ड्राफ्ट नीति का विरोध किया जा रहा है, जबकि कृषि विपणन ड्राफ्ट नीति का विरोध करना किसान हित के विपरीत है। इन संगठनों के अनुसार, यह ड्राफ्ट निरस्त कृषि कानूनों के प्रावधानों को फिर से लागू करने की एक कोशिश है। कृषि मंत्रालय ने 25 जून 2024 को मसौदा तैयार करने के लिए इस समिति का गठन किया था। 25 नवंबर को समिति ने कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा का मसौदा प्रसारित किया और जनता से सुझाव या टिप्पणियां मांगीं थी। प्रस्तावित समिति का उद्देश्य राज्यों के कृषि मंत्रियों को साथ लाकर एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली, एक समान बाजार शुल्क और बाधा-मुक्त कृषि-व्यापार जैसे मुद्दों पर सहमति बनाना है।

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तत्वावधान में 12 सदस्यीय समिति ने कई कदमों की सिफारिश की है, जिसमें संगठित खुदरा विक्रेताओं सहित थोक खरीदारों द्वारा कृषि वस्तुओं की सीधे खेत से खरीद की अनुमति देना शामिल है। इसके लिए, उन्हें राज्य-अधिसूचित मंडियों से गुजरने या इन बाजार यार्डों के संचालकों द्वारा लगाए जाने वाले शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी। इन उपायों का मूल उद्देश्य व्यापार की शर्तों को किसानों के पक्ष में मोड़ना है।

पिछले कई सालों से विभिन्न समितियां और आयोग कृषि उपज के लिए राष्ट्रीय स्तर के एकीकृत बाजार के विकास की सिफारिश करते रहे हैं, ताकि कृषि उपज का देशभर में निर्बाध व्यापार हो सके। इस विषय में बनी विभिन्न समितियां के इन सुझावों में निजी थोक बाजार स्थापना; प्रसंस्करणकर्ताओं, निर्यातकों, संगठित खुदरा विक्रेताओं, थोक खरीदारों द्वारा सीधे खेत से खरीद; गोदाम/साइलोज व शीत भंडारणगृहों को डीम्ड मार्केट यार्ड घोषित करना, पूरे राज्य में एकमुश्त बाजार शुल्क लगाना तथा पूरे राज्य में वैध एकीकृत व्यापार लाइसेंस जैसे कदम शामिल हैं।

किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि उपज के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी, बाधा-मुक्त और पारदर्शी बाजार की आवश्यकता कई वर्षों से अनुभव की जा रही है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त सचिव (विपणन) फैज अहमद किदवई की अध्यक्षता वाली समिति ने कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति के मसौदे में जीएसटी समिति की तर्ज पर अब राज्यों के कृषि मंत्रियों के एक पैनल के गठन का प्रस्ताव रखा है। कृषि मंत्रालय द्वारा गठित समिति के इस सुझाव को कृषि विपणन सुधारों की दिशा में अहम बताया जा रहा है, जिससे अंततः किसानों को लाभ होने की बात कही जा रही है।

इन सुझावों में आपूर्ति शृंखला में बिचौलियों को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को उनकी उपज का बेहतर रिटर्न मिले, ये उपाय महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, इस पहल की सफलता इन सुधारों को अपनाने और लागू करने के लिए राज्यों की इच्छा पर निर्भर करती है। राज्यों के कृषि मंत्रियों के पैनल के गठन का समिति का सुझाव महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्यों ने केंद्र द्वारा वर्षों पहले सुझाए गए कृषि विपणन सुधारों को अभी तक अपनाया नहीं है। इसलिए देश के कुछ किसान संगठनों द्वारा केंद्र सरकार की कृषि विपणन ड्राफ्ट नीति का विरोध करना किसान हित के विपरीत है। ये किसान संगठन कृषि में हर सुधार का विरोध कर रहे है और किसानों को यह नहीं बताते कि सुधार वाले कानूनों में कमी क्या है। इए किसान संगठन हर कानून का यह कहकर भी विरोध करते है कि इस कानून में एमएसपी गारंटी का प्रावधान नहीं है, जबकि एमएसपी गारंटी का प्रावधान होना या न होना अलग विषय है और कृषि बाजार सुधार अलग विषय है। भारत में कृषि क्षेत्र में भूमि की जोत छोटी है, और अन्य देशों की तुलना में बहुत कम उत्पादक हैं। अधिकांश अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि इस क्षेत्र में सुधार और अधिक दक्षता की आवश्यकता है।

देश ने हाल के कुछ वर्षों में कई आंदोलन देखे है। इस दौर में सबसे पहले जन लोकपाल के लिए आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन को मिले समर्थन के बलबूते अरविंद केजरीवाल सत्ता की सीढ़ियां चढ़ कर अपनी मंजिल पर पहुँच गये थे, लेकिन दिल्ली में जन लोकपाल नहीं बनाया था। देश ने दिल्ली में हरियाणा के कुछ पहलवानों का आंदोलन भी देखा। ये पहलवान राजनीति के अखाड़े में कूदने के लिए उसी खेल को नुकसान पहुँचाते रहे, जिसकी बदौलत उन्होंने दौलत और शोहरत कमाई थी। देश ने किसान आंदोलन भी देखा। किसानों के कल्याण और उनके बेहतर भविष्य के लिए मोदी सरकार जो तीन कानून लेकर आई थी, उसके बारे में भ्रम फैला कर देशभर में किसानों का आंदोलन खड़ा कर दिया गया था, जिसके चलते सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। वर्ष 2020-21 में चले दिल्ली आन्दोलन के कारण तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने पर भारतीय किसान वापस बीसवीं सदी में धकेल दिया गया हैऔर फिर वो वस्तुओं और क़ीमतों के सीमित विकल्प के दायरे में रहकर काम करने को मजबूर हो गया है, जबकि इन कानूनों का विरोध करने वाले अधिकतर किसान नेता अपनी एसयूवी (SUV) कार में सवार होकर 21वीं सदी की रफ़्तार का लुत्फ़ लें रहे है।

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Author: Taja Report

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