नई दिल्ली। इराक में एक शोध अभियान चल रहा है। इस शोध अभियान में फिलहाल संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले अयोध्या शोध संस्थान, एब्रिल वाणिज्य दूतावास के भारतीय राजनयिक, सुलेमानिया विश्वविद्यालय के इतिहासकार और कुर्दिस्तान के इराकी गवर्नर भी शामिल हैं। इसका विषय है एक भित्ति चित्र जो छ: हजार साल पुराना है, इराक में पाया गया है। अयोध्या शोध संस्थान का दावा है कि यह प्रभु राम और हनुमान जी का चित्र है। कुछ दूसरे अध्येता इसे एक जनजाति के जीत का चित्र बता रहे। आप संलग्न चित्र देखेंगे तो आप को पहले दावे की सत्यता पर विश्वास होगा। वस्तुतः इराक की सुमेरियन सभ्यता का मूल स्थान भारत ही था है, ऐसा उनके टेक्स्ट कहते हैं। कहते हैं कि महाराजा रघु ने सुमेर क्षेत्र को अपने साम्राज्य में मिला लिया था बाद में मध्य एशिया के इंद्र को जीत कर मेघनाद ने सुमेर को लंका का उपनिवेश बना दिया। जब भगवान राम ने रावण को पराजित किया तो सुमेर समेत तमाम राज्य जिन्हें रावण ने अपने अधीन किया था उन्हें स्वतंत्र कर दिया। सुमेर भी स्वतंत्र हो गया। फरात नदी के तट पर सूर्य मंदिर की स्थापना हुई जो सूर्यवंशी राम के प्रति उनकी कृतज्ञता का प्रतीक था। धनुषधारी राम और हनुमान के चित्र सुमेर में उकेरे गए। अभी हाल में ही इराक में मंदिर मिला जो निंगीरसु को यानी उनके एक शक्तिशाली देव जो हवाओं का रुख मोड़ देता है, उसे समर्पित है। इराक से लेकर सोमालिया और ग्वाटेमाला तक हिंदू संस्कृति के चिन्ह बिखरे पड़े हैं। लैटिन अमेरिका, जापान से लेकर इंडोनेशिया तक हनुमान जी, गणेश जी की मूर्तियां मिलती हैं। इराक आज भले ही इस्लामिक देश हो गया है लेकिन एक समय में यह आस्तिक और सारस्वत सभ्यता वाला देश रहा है। हमारे पुरखों की तपस्या, उनके संकल्प और सनातन हिंदुत्व के प्रति एकनिष्ठता के कारण आज हम वही हैं जो दस से पचास हजार वर्ष पहले थे। हमारी पहचान, हमारी संस्कृति की सदा-नीरा लगातार प्रवाहित होती रही। केवल संभल नहीं, सुमेर में भी महादेव का डमरू बज रहा है, रूद्रावतार अपने राम के साथ हैं, यह बात आज नहीं तो कल स्थापित ही होगी।
