नई दिल्ली: आज यानी 15 फरवरी को इलेक्टेरल बॉन्ड (Electoral Bond) की कानूनी वैथता पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपना फैसला दिया है। इस बाबत CJI ने कहा कि, सर्वसम्मत फैसला है। चुनावी बॉन्ड के मामले पर आज कोर्ट ने कहा है कि लोगों को भी इस बारे में जानने का अधिकार है। बड़े चंदे गोपनीय रखना असंवैधानिक बात है। साथ ही SBI अब आगामी 6 मार्च तक चुनावी बॉन्ड की जानकारी दें। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर तत्काल रोक लगा दी है।
Supreme Court holds Electoral Bonds scheme is violative of Article 19(1)(a) and unconstitutional. Supreme Court strikes down Electoral Bonds scheme. Supreme Court says Electoral Bonds scheme has to be struck down as unconstitutional. https://t.co/T0X0RhXR1N pic.twitter.com/aMLKMM6p4M
— ANI (@ANI) February 15, 2024
बड़े चंदे गोपनीय रखना असंवैधानिक
दरअसल आज इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि, देश के नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास आखिर पैसा कहां से आता है और कहां जाता है। सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने आज यह भी कहा कि कोर्ट का मानना है कि, गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार (RTI) और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ ही जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
Supreme Court orders that SBI shall furnish the details of Electoral Bonds encashed by the political parties. Supreme Court says SBI shall submit the details to the Election Commission of India and ECI shall publish these details on the website.
— ANI (@ANI) February 15, 2024
क्या बोले CJI चंद्रचूड़
आज फैसले पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि दो मत है लेकिन दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। दरअसल भारत सरकार साल 2017 में ये कानून लेकर आई थी। आज सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चुनावी बांड स्कीम सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों के लिए अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में भी स्पष्टता मिलती है।
Supreme Court says information about corporate contributors through Electoral Bonds must be disclosed as the donations by companies are purely for quid pro quo purposes.
— ANI (@ANI) February 15, 2024
आज इस बाबत CJI ने कहा है कि, क्या 19(1) के तहत सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आज यह भी कहा है कि इस अदालत ने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में जानकारी के अधिकार को मान्यता दी और यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सहभागी लोकतंत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाने तक भी सीमित होता है।
आखिर क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड
दरअसल साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई। इसे लागू करने के पीछे यह मत और तर्क था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन सरकार में आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं। इस बाबत भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया। ये शाखाएं 29 नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु में मौजूद हैं।
