नई दिल्ली: यूं तो हमेशा से ही कहानियों और दंत कथाओं के माध्यम और तमाम शास्त्रों के जरिए ये ही बताया जाता है कि गुरु शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे। लेकिन आखिर ऐसा वे दैत्यों के गुरु कैसे बने, इसके बारे में शायद आपको पता न हो। आइए आज इसके बारें में हम आपको बताते हैं ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद के भांजे थे। वहीं महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो उनके भाई दक्ष की कन्या थीं। ख्याति से महर्षि भृगु को दो पुत्र धाता और विधाता मिले और एक बेटी लक्ष्मी का भी जन्म हुआ। इन्ही लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से कर दिया। महर्षि भृगु के और भी पुत्र थे जैसे उशनस और च्यवन आदि। ऐसा माना जाता है कि उशनस ही आगे चलके शुक्राचार्य बने। जब शुक्र थोड़े से बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें ब्रम्हऋषि अंगऋषि के पास शिक्षा के लिए भेजा। अंगऋषि ब्रम्हा के मानस पुत्रों में सर्वश्रेष्ठ थे और उनके एक पुत्र बृहस्पति थे जो बाद में देवों के गुरु बने।
वहां शुक्राचार्य के साथ उनके पुत्र बृहस्पति भी पढ़ते थे। ऐसा माना जाता है कि शुक्राचार्य, बृहस्पति की तुलना में ज्यादा तेज थे, लेकिन फिर भी बृहस्पति के अंगऋषि ऋषि के पुत्र होने की वजह से उन्हें ज्यादा अच्छी शिक्षा मिलती थी, जिसके चलते एक दिन शुक्राचार्य ईर्ष्यावश उस आश्रम को छोड़ के सनकऋषि और गौतम ऋषि से शिक्षा लेने लगे। अपनी शिक्षा पूर्ण होने के बाद जब शुक्राचार्य को पता चला कि बृहस्पति को देवों ने अपना गुरु नियुक्त किया है तो उन्होंने भी ईर्ष्यावश दैत्यों के गुरु बनने की मन में ठान ली।
लेकिन इसमें मुश्किल यह थी कि दैत्यों के देवों के हाथों हमेशा मिलने वाली पराजय थी। इसके बाद शुक्राचार्य मन ही मन ये सोचने लगे कि अगर वह भगवान को शिव को प्रसन करके उनसे संजीविनी मंत्र प्राप्त कर लेते हैं तो वह दैत्यों को विजय दिलवा सकते हैं। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या शुरु कर दी। उधर देवों ने मौके का फायदा उठा के दैत्यों का संहार करना शुरू किया।
लेकिन शुक्राचार्य को तपस्या में लीन देख सभी दैत्य उनकी माता के शरण में गए। ख्याति ने दैत्यों को शरण दी और अब जो भी देवता, दैत्य को मारने आता, वे उसे मूर्छित कर देतीं या फिर अपनी शक्तियों से लकवा ग्रस्त बना देतीं। ऐसे में दैत्य अब बलशाली हुए और धरती में पाप बढ़ गया।
पृथ्वी पर ऐसी दुर्गति देख और धरती पर पुनः धर्म की स्थापना हेतु भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की मां और भृगु ऋषि की पत्नी ख्याति का सुदर्शन चक्र से सिर काट के दैत्यों के संहार में देवों की और समूचे जगत की मदद की। लेकिन इस बात का पता चलने पर शुक्राचार्य भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और उनसे बदला लेने की ठान ली।
अब वो फिर भगवान शिव की तपस्या में लीन हुए और कई सालों की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उन्हें संजीविनी मंत्र दे दिया। फिर क्या था शुक्राचार्य ने दैत्यों के राज्यों को पुनः स्थापित कर अपनी मां की मृत्यु का बदला लिया। ऐसा माना जाता है कि तब से शुक्राचार्य और भगवान विष्णु एक दूसरे के बड़े शत्रु बन गए।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, जब महर्षि भृगु को जब इस बात की पता चला कि भगवान विष्णु ने उनकी पत्नी ख्याति का वध किया है तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि उन्होंने एक स्त्री का वध किया है, इसलिए उनको बार-बार पृथ्वी पर मां के गर्भ से ही जन्म लेना होगा और गर्भ में रह कर अनेकों कष्ट भोगना पड़ेगा।
इस श्राप से पहले जहां भगवान विष्णु वराह अवतार, मतस्य अवतार, कुरमा और नरसिंह अवतार लेकर प्रकट हुए थे। लेकिन अब इस श्राप के बाद उन्होंने भगवान परशुराम, भगवान राम, भगवान कृष्ण के रूप में जन्म लिया। तब उन्हें मां के पेट रहकर पीड़ा झेलनी पड़ी थी। हालांकि इसके बाद में शुक्राचार्य से बृहस्पति के पुत्र ने ही संजीवन विद्या सीख कर उन्ही का पतन कर दिया।